Vision & Mission

हम सब जानते हैं, जल ही जीवन है। सृष्टि के रचना के साथ ही प्रकृति ने हमें निर्बाध रूप से जीवन के निर्वाह हेतु हवा, पानी व प्रकाश प्रचुरता में उपलब्ध कराया है। प्राणी मात्र के लिए प्रकृति प्रदत्त पंचतत्व अमूल्य है। सृष्टि रचना में इनका महत्वपूर्ण योगदान है। अत: प्रकृति के नियमों के तहत ही हमें इनका उपयोग करना होगा। हमारे संविधान की धारा 15(2) में भी “जीवन के आधार” के तहत भी यह कहा गया है। न्यायपालिका के भी पूर्व के कई फैसले इसकी पुष्टि करते हैं। लेकिन सरकार ने प्रकृति के नियमों की अवहेलना करते हुए इसके निजीकरण व व्यवसायिकरण का मन बना लिया है। ऐसा प्रस्तावित राष्ट्रीय जल नीति -2012 से लगता है। सरकार की यह नीति प्राणी मात्र के हित में नहीं है। अत: हम जलाधिकार से जुड़े लोग इसका विरोध करते हुए सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित करते हैं कि:

1. सरकार प्रकृति के नियमानुसार प्राणी मात्र को स्वक्छ पीने योग्य नि :शुल्क पानी उपलब्ध कराये क्योंकि यह सरकार का मूलभूत दायित्व है।

2. पानी के निजीकरण व व्यवसायिकरण को सरकार बंद करे क्योंकि निजीकरण व व्यवसायिकरण देश के संभ्रांत लोगों और कुछ विदेशी कंपनियों को तो लाभ पहुंचा सकता है लेकिन समाज के सभी वर्गों के लिए हितकर नहीं होगा और जो संविधान के तहत सरकार का घोषित उद्देश्य है, उसकी पूर्ति में सहायक भी नहीं होगा। पानी के निजीकरण व व्यवसायिकरण से गृह युद्ध जैसी स्थिति पैदा होगी जैसा कि विश्व के कई देशों जैसे बोलोवीया, निकारागुआ आदि में हुई।

3. देश में पानी की कमी नहीं है, बल्कि इसके संरक्षण एवं उपयोग के प्रति जागरूकता की ज्यादा आवयशकता है। अत: हम सरकार से आग्रह करते हैं की पानी के संरक्षण एवं रखरखाव के लिए पारंपरिक तरीके जैसे तालाब, बावरिया आदि को पुनर्जीवित करे तथा ग्रामीण विकास की नीति को अपनाते हुए इसके संरक्षण एवं संवर्धन की नीति बनाए।

 

पुन:श्च पानी वस्तु नहीं है, यह जीवन तत्व है । अत: इसका निजीकरण व व्यवसायिकरण नहीं होना चाहिए । इस जीवन तत्व को प्राणी मात्र के लिए उपलब्ध कराया है। अत: सरकार का यह दायित्व है कि स्वक्छ व पीने योग्य पानी नि:शुल्क जनता तक पहुंचाए।