भारत में स्वच्छता और स्वास्थ्य पर फैक्ट शीट

भारत : खुले में शौच की वैश्विक राजधानी

1. भारत एक दिवसीय क्रिकेट में विश्व चैंपियन है लेकिन खुले में शौच का करने वाली 62 करोड़ 20 लाख की आबादी (राष्ट्रीय औसत 53.1 प्रतिशत) के साथ भारत खुले में शौच की वैश्विक राजधानी भी है। भारत की यह संख्या अगले 18 देशों की खुले में शौच करने वाली संयुक्त आबादी से दोगुने से ज्यादा है, दक्षिण एशियाई देशों की खुले में शौच करने वाली में 69 करोड़ 20 लाख की आबादी का 90 प्रतिशत है और यह खुले में शौच करने वाले दुनिया में 1.1 अरब लोगों का 59 प्रतिशत है।

2. 2011 की जनगणना के अनुसार राष्ट्रीय स्वच्छता कवरेज 46.9 प्रतिशत है जबकि ग्रामीण स्वच्छता कवरेज सिर्फ 30.7 प्रतिशत है। ग्रामीण दलितों में यह 23 प्रतिशत और आदिवासियों में यह 16 प्रतिशत से भी कम है।

3. भारत में शौचालय से अधिक मोबाइल फोन (2011 की जनगणना) है। भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण के अनुसार देश में वर्तमान में 92 करोड़ 90 लाख से अधिक मोबाइल फोन उपभोक्ता हैं। दूसरों शब्दों में, 300 मिलियन भारतीय मोबाइल फोन का उपयोग करते हैं लेकिन शौचालय का नहीं।

4. विकसित स्वच्छता सुविधाओं का उपयोग करने वाले लोगों के प्रतिशत के मामले में पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका और भूटान जैसे देश भारत से आगे हैं।

5. जब ग्रामीण और शहरी प्रतिशत आबादी में विकसित शौचालय सुविधा के उपयोग की बात आती है तो भारत पूरे दक्षिण एशिया में आखिरी स्थान पर आता है।

लापता शौचालय

1. भारत के 1.2 अरब लोगों की आबादी में से लगभग आधे घरों में कोई शौचालय नहीं है। अनुसूचित जाति के लगभग 77 प्रतिशत और अनुसूचित जनजाति के 84 प्रतिशत घरों में शौचालय नहीं है।

2. भारत में विभिन्न राज्यों में शौचालय विहिन घरों की सूची में झारखंड शीर्ष पर है; यहां 77 प्रतिशत घरों में शौचालय नहीं है जबकि 76.6 प्रतिशत के साथ उड़ीसा और 75.8 प्रतिशत के साथ बिहार अगले नंबर पर आते हैं। ये तीन राज्य देश के सबसे गरीब राज्यों में शुमार होते हैं जहां की आबादी 50 रुपए से भी कम में गुजर बसर करते हैं। (स्रोत जनगणना 2011)

3. देश की 0.6 लाख गाँवों में से केवल 25 हजार गांव खुले में शौच की प्रथा से मुक्त हैं।

4. भारत की जनगणना 2011 के अनुसार, मध्य प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में शौचालय के उपयोग की दर 13.6 प्रतिशत, राजस्थान में 20 प्रतिशत, बिहार में 18.6 प्रतिशत और उत्तर प्रदेश में 22 प्रतिशत है।

अर्थशास्त्र

पर्याप्त स्वच्छता के अभाव में भारत में एक बड़ी समस्या है। भारत को इस वजह से ज्यादा स्वास्थ्य लागत, उत्पादकता घाटा और कम पर्यटन आय के रूप में 53.8 बिलियन डॉलर (भारत के सकल घरेलू उत्पाद 2006 का 6.4 प्रतिशत से अधिक है) का नुकसान होता है। (विश्व बैंक का जल एवं स्वच्छता कार्यक्रम, फरवरी 2011)

शुष्क शौचालय और मैला ढोना

भारत की जनगणना 2011 बताती है कि भारत में मैला ढोने की अमानवीय प्रथा अभी भी जारी है। जनगणना के आंकड़ों के अनुसार अभी भी देश में 7 लाख 94 हजार 390 शुष्क शौचालय हैं जहां मानव मल मनुष्यों द्वारा साफ किया जाता है। इनमें से 73 प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्रों में और 27 प्रतिशत शहरी क्षेत्रों में है। इसके अलावा 13 लाख 14 हजार 652 शौचालय हैं जहां मानव मल नालियों में बहता है। इस तरह, देश में कुल 26 लाख से अधिक शुष्क शौचालय हैं जहां मैला ढोने की प्रथा अभी भी जारी है।

बच्चे

1. ठीक से सफाई न होना डायरिया से होने वाली मौतों का एक बड़ा कारण हैं।

2. 14 साल की उम्र तक के सभी बच्चों में 20 फीसदी से अधिक बच्चे असुरक्षित पानी, अपर्याप्त स्वच्छता या अपर्याप्त सफाई के कारण या तो बीमार रहते हैं या मर जाते हैं।

3. शौचालय निर्माण में उत्साहजनक वृद्धि (जनगणना के अनुसार 2011 में 84 फीसदी स्कूलों में शौचालय की सुविधा थी) के बावजूद पहुंच, संचालन और सुविधाओं के रखरखाव की भारी समस्याएं हैं जो ग्रामीण क्षेत्रों में स्कूली बच्चों के खुले में शौच का प्रमुख कारण हैं।

महिला

1. अस्वच्छता के कारण महिलाएं प्रजनन मार्ग के संक्रमण से ग्रस्त हैं (जीवन के लिए तथ्य)

2. शौचालयों की कमी के कारण महिलाओं को अधिक गंभीर रूप से सांस्कृतिक वर्जना झेलनी पड़ती है। वे दिन में खुले में शौच के लिए नहीं जा सकती हैं। शौचालय के अभाव में लाखों महिलाएं सुबह और शाम के बीच शौच न जाने को मजबूर होती हैं।

3. शौच के लिए पुरुषों की नज़रों से दूर जाने की कोशिश में महिलाएं सुनसान स्थानों पर जाती हैं और अकसर ही मारपीट या बलात्कार की शिकार हो रही हैं।

4. यौवन के उपरांत लड़कियां और महिलाएं अपने पूरे जीवन काल में 3 हजार दिन या जीवन के लगभग 10 साल के समय तक रजस्वला रहती हैं। हाल के एक अध्ययन के अनुसार, भारत में मासिक आधार पर 355 मिलियन महिलाएं और लड़कियां रजस्वला होती हैं। रजोनिवृत्ति तक का महिला को माहवारी के दिनों का प्रबंधन करने के लिए औसतन 7,000 सेनेटरी पैड की आवश्यकता होती है।’

5. केवल 12 प्रतिशत युवा लड़कियों और महिलाओं को सेनिटरी नैपकिन उपलब्ध हैं और वे इसका उपयोग करती हैं। हालांकि, जो सेनिटरी नैपकिन का उपयोग करती हैं उन्हें स्कूलों, कॉलेजों, सामुदायिक शौचालयों आदि में इनके सुरक्षित निपटान की सुविधा नहीं मिलती।

6. 200 मिलियन महिलाओं को मासिक धर्म स्वच्छता और उससे जुड़ी स्वास्थ्य देखभाल की पर्याप्त जानकारी नहीं है।

7. भारत की 23 प्रतिशत लड़कियां यौवन तक पहुंचने के बाद स्कूल जाना छोड़ देती हैं।

विकलांक (पीडब्ल्यूडी) और बुजुर्ग

1. देश में कुल आबादी का लगभग 2.1 प्रतिशत यानी 2 करोड़ 10 लाख व्यक्ति विकलांगता के साथ जी रहे हैं। इसमें अस्थाई रूप से विकलांग और बुजुर्ग भी शामिल हैं। 2020 में विकलांगता के साथ जी रहे लोगों की कुल जनसंख्या 7 करोड़ होने का अनुमान है जिनमें 17 करोड़ 70 लाख बुजुर्ग होने का अनुमान है जिनमें से अधिकांश बहु विकलांगता की स्थिति में होंगे।

2. विकलांगता के साथ जीने वालों के लिए उनकी शारीरिक बाधाओं के कारण सामान्य बुनियादी ढांचे का उपयोग करना या शौच के लिए बाहर जाना मुश्किल होता है।

3. ग्रामीण और शहरी इलाकों में विकलांगता के साथ जीने वालों के लिए सार्वजनिक शौचालय कम हैं और दूर हैं। यहां तक कि स्कूलों में भी आश्चर्यजनक ढंग से उनके लिए कोई प्रावधान नहीं है। विकलांगों के लिए सुलभ शौचालय मानकों का प्रावधान किसी राज्य/राष्ट्रीय/अंतरराष्ट्रीय नीतियों में निर्दिष्ट नहीं हैं।

स्वास्थ्य-विज्ञान

1. जन स्वास्थ्य एसोसिएशन के अनुसार, केवल 53 प्रतिशत भारतीय शौच जाने के बाद साबुन से हाथ धोते हैं, केवल 38 फीसदी खाने से पहले साबुन से हाथ धोते हैं और केवल 30 फीसदी लोग खाना पकाने के पहले साबुन से हाथ धोते हैं। (यूनिसेफ)

2. केवल 11 प्रतिशत भारतीय ग्रामीण परिवारों में बच्चे के मल का निपटान सुरक्षित रूप से होता है। 80 प्रतिशत बच्चों के मल को खुले में छोड़ दिया जाता है या कचरे में फेंक दिया जाता है। (यूनिसेफ)

3. साबुन से हाथ धोना, विशेष रूप से मलमूत्र के संपर्क के बाद, डायरिया के मामलों को 40 प्रतिशत और श्वसन संक्रमण को 30 प्रतिशत तक कम कर सकता है।