भारत के आम नागरिक के लिए नि:शुल्क एवं शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने के लिए अभियान चला रही संस्था ‘‘जलाधिकार’’ के तत्वाधान में नोएडा में नागरिक सम्मेलन आयोजित किया गया। इसमें संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री गोपाल अग्रवाल ने इस पूरे अभियान की परिकल्पना को स्पष्ट करते हुए बताया कि मनुष्य मात्र का जीवन जल पर पूरी तरह अवलंबित है। वर्तमान में देश में पानी के संरक्षण, वितरण एवं प्रबंधन की कोई स्पष्ट नीति नहीं है। नागरिकों को प्रचुर मात्रा में शुद्ध पेयजल प्राप्त हो इसके लिए एक समग्र जलनीति की अत्यंत आवश्यकता है। दुर्भाग्य से कॉरपोरेट घरानों के हित साधने हेतु केन्द्र सरकार एक जन विरोधी ड्राफ्ट पॉलिसी के द्वारा देश में उपलब्ध जल संसाधनों का निजीकरण करने की चेष्टा कर रही है। इस पॉलिसी के पास हो जाने से आम नागरिक का देश के जल संसाधनों पर अधिकार पूरी तरह से समाप्त हो जाएगा और सभी जल के स्रोत व्यापारिक घरानों के हाथ में सिेमटकर रह जाएंगे। सरकार और निजी कंपनियां मीडिया के माध्यम से भ्रामक प्रचार कर रही हैं कि देश में पेयजल की भारी कमी है। सच तो ये है कि देश में प्रकृति द्वारा प्रदत्त जल स्रोतों का यदि प्रबंधन वैज्ञानिक ढ़ंग से किया जाय तो 2050 तक देश में पानी की कोई किल्लत नहीं होगी। परंतु सरकार पेयजल की उपलब्धता का रोना रोकर निजी कंपनियों के हाथ में जल स्रोंतों को बेच देना चाहती है ताकि निजी कंपनियां मनमाने तरीके से पानी की तिजारत कर सकें। मजे की बात ये है कि जल का वितरण, प्रबंधन एवं विपरण में निजी कंपनियों के बीच ठेके के लिए टेंडर जारी कर पारदर्शी रुप से संसाधनों को बेचने में भी कोताही बरत रही है। जल के शुद्धिकरण एवं वितरण में प्राइवेट-पब्लिक पार्टनरशिप का मॉडल लागू कर जल स्रोतों को औने-पौने कीमत पर निजी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के हाथों बेच देना चाहती है। ऐसा होने से आम जनता को पानी पर भारी शुल्क चुकाने को मजबूर होना पड़ेगा। विश्व बैंक के इशारे पर सरकार, जायका जैसी निजी कंपनी के हाथों जल वितरण का काम सौंपना चाहती है। दक्षिण अफ्रीका में आम नागरिकों ने वहां कि सरकार द्वारा जल स्रोतों का निजीकरण पूरी तरह नकार दिया। इटली में भी मतादेश द्वारा आम नागरिकों ने बहुराष्ट्रीय कंपनी के प्रवेश पर पूरी तरह से रोक लगा दिया। सरकार पानी को एक बाजारु वस्तु (कॉमोडिटी) बनाकर बेचना चाहती है। जिस देश में 65 प्रतिशत लोग गरीबी रेखा से नीचे रहते हैं तथा जो लोग दो जून की रोटी के जुगाड़ को भी तरसते हैं, उन पर पानी के मूल्य का बोझ डालना न केवल अनैतिक है बल्कि अमानवीय भी है।
‘‘जलाधिकार’’ के महामंत्री श्री कैलाश गोदुका ने जल के निजीकरण का विरोध करते हुए जल के स्रोतों का संवर्द्धन के कई प्राचीन तरीकों का सुझाव दिया। भू-गत जल के संवर्द्धन हेतु तालाब, बाबड़ियों, कच्चे कुओं तथा कुंडों की आवश्यकता रेखांकित की। कार्यक्रम का उद्घाटन चिन्मय मिशन के उत्तर भारत क्षेत्र प्रमुख स्वामी श्री निखिलानंद के कर कमलों द्वारा दीप प्रज्वलित कर किया गया। स्वामीजी ने श्रीमदभागवत गीता में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा अष्टधा प्रकृति एवं पंचमहाभूतों में जल को सर्वत्तोम बताए जाने का विस्तृत वर्णन किया है। उनके अनुसार सभी धर्मों में जल का प्रयोग सभी उपासना पद्धति में किया जाता है। भारत में नदियों, बाबड़ियों तथा कुओं की पूजा जल के प्रति मानव की आस्था एवं सम्मान को प्रकट करते हैं। गंगा, यमुना तथा गोदावरी को हम माँ मानते हैं। इनको प्रदूषित करना माँ पर अत्याचार नहीं है तो क्या है? उन्होंने स्पष्ट कहा कि जल जैसे महत्वपूर्ण प्राकृतिक तत्व का सरकार को व्यवसायिक एवं निजीकरण नहीं करना चाहिए। क्योंकि इसमें आम जनता को परेशानी होगी। साथ ही नदियों एवं सभी प्राकृतिक जल स्रोतों का संरक्षण का सभी ने प्रयास करना चाहिए और सामाजिक महत्व के इस अभियान को शुभकामनाएं प्रदान की।
इस कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि थे, प्रमुख समाजसेवी तथा व्यवसायी श्री मोतीलाल गुप्ता जी। उन्होंने अपने विभिन्न देशों के अनुभवों को बताते हुए कहा कि सब लोगों को देशहित में विचार करना चाहिए और बाहर के देशों का अनुकरण की आवश्यकता नहीं है। अपना देश और उसकी संस्कृति बहुत सक्षम है। उन्होंने इस अभियान में अपना पूर्ण समर्थन व्यक्त किया। इस अवसर पर श्री अनिल जोशी द्वारा रचित तथा राजीवराज अहलुवालिया द्वारा स्वरबद्ध जलगीत का भी विमोचन किया। उस जलगीत की एक-एक सीडी सभी अभ्यागतों को प्रदान की गयी। इसके बोल ‘‘पानी पानी पानी…..मांग रहा है देश..’’ एवं विचार सामाजिक जागरुकता के लिये बड़े महत्वपूर्ण है। अनिलजी एवं राजीव ने कहा कि इस अभियान के लिए हम समर्पित हैं और गोपालजी एवं कैलाशजी जिस प्रकार भी हमारे सहयोग के लिए कहेंगे, हम उसे पूर्ण करेंगे। भारत भवन के निवर्तमान अध्यक्ष तथा देश के जानेमाने नाटककार श्री दयाशंकर सिन्हा द्वारा लिखित एक नुक्कड़ नाटक का मंचन छात्र एवं छात्राओं द्वारा किया गया।
16 विद्यार्थियों द्वारा मंचित यह नाटक लोगों की भावनाओं को जगाने में सफल रहा। सभी ने इसकी तालियों की गड़गड़हट के साथ भूरी-भूरी प्रशंसा की। इसे कार्यक्रम के संदेश के लिए महत्वपूर्ण उपलब्धी के रुप में माना गया। श्री सिन्हाजी ने कहा कि 40 वर्षों के मेरे नाट्य लेखन में मेरा यह पहला नुक्कड़ नाटक है। मुझे इस विषय की गंभीरता और पदाधिकारियों की प्रतिबद्धता ने प्रेरित किया कि उम्र के इस पड़ाव में मैंने फिर से नाटक लिखा।
इस नाटक में श्री नरेश शांडिल्य जी द्वारा रचित एक गीत को कोरस के रुप में प्रयोग किया गया। यह गीत के बोल
‘‘जनपद जनपद, नुक्कड़ नुक्कड़ अलख जगाएंगे
हम एक दिन जल को हर चंगुल से मुक्त कराएंगे।’’ …..
विशेष संदेश देते हैं। इसको गाया श्री संजय प्रभाकर जी ने। दोनों ने अपना सहयोग इस अभियान को देने का वचन दिया।
कार्यक्रम से पूर्व स्कूली विद्यार्थियों के लिए चित्रकला तथा स्लोगन प्रतियोगिताओं का आयोजन किया गया। जिसमें राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के विद्यार्थीयों ने भारी उत्साह से भाग लिया। कार्यक्रम में इन छात्रों को पुरस्कार एवं प्रमाण-पत्र स्वामी श्री निखिलानंद जी के कर कमलों द्वारा दिया गया। चित्रकला तथा स्लोगन प्रतियोगिता दो वर्गों में विभाजित थे। चित्रकला में 14 वर्ष से नीचे के वर्ग में प्रथम पुरस्कार खेतान पब्लिक स्कूल के कौशल चक्रवर्ती और द्वितीय पुरस्कार बाल भारती स्कूल के महक देवगन ने जीते। 14 से 18 वर्ष के वर्ग के प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार सरला चोपड़ा डीएवी पब्लिक स्कूल की राजश्री नौटियाल तथा द्वितीय पुरस्कार एवरग्रीन पब्लिक स्कूल के मोहित ने प्राप्त किया। स्लोगन प्रतियोगता में डीएवी, कैलाश हिल्स की राशिअभी श्रीवास्तव और द्वितीय पुरस्कार प्राची सिन्हा ने प्राप्त किए।