खतरे के दौर से गुजर रहीं हैं बड़ी नदियां

वैश्विक धारा के प्रवाह को लेकर हुए एक व्यापक अध्ययन के अनुसार दुनिया के सर्वाधिक आबादी वाले कुछ क्षेत्रों में नदियां अपना पानी खो रहीं हैं. अमेरिका के नेशनल सेंटर फॉर एटमॉस्फेयरिक रिसर्च के वैज्ञानिकों के नेतृत्व हुए इस अध्ययन के मुताबिक कई मामलों में प्रवाह के कम होने की वजह जलवायु परिवर्तन से जुड़ी हुई है.

इस अध्ययन के नतीजे 15 मई के अमेरिकन मेट्योरोलॉजिकल सोसायटी के जर्नल में प्रकाशित किए जाएंगे. 1948 से 2004 के बीच धाराओं के प्रवाह की जांच के बाद वैज्ञानिकों ने पाया कि दुनिया की एक तिहाई सबसे बड़ी नदियों के जल प्रवाह में महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए हैं. इस दौरान अगर किसी एक नदी का प्रवाह बढा है तो उसके अनुपात में 2.5 नदियों के प्रवाह में कमी आई है. उत्तरी चीन की पीली नदी, भारत की गंगा नदी, पश्चिम अफ्रीका की नाइजर, संयुक्त राज्य अमेरिका की कोलोराडो बडी आबादी वाले इलाकों की प्रमुख नदियां हैं जिनके प्रवाह में गिरावट आई है. इसके विपरीत आर्कटिक महासागर जैसे कम आबादी वाले इलाकों में अधिक धारा प्रवाह की रिपोर्ट है, जहां बर्फ तेजी से पिघल रहा है. संस्था के वैज्ञानिक और प्रमुख लेखक अगुई दाई कहते हैं, “नदियों के प्रवाह के घटने से शुद्ध जल के संसाधनों पर दबाव बढ़ रहा है, खास तौर पर उन इलाकों में जनसंख्या बढ़ने के कारण पानी की अधिक मांग है. स्वच्छ जल एक महत्वपूर्ण संसाधन है लिहाजा इसमें कमी एक बड़ी चिंता का विषय हैं.”

नदियों के प्रवाह को कई चीजें प्रभावित कर सकती हैं जैसे बांध और कृषि व उद्योग के लिए पानी को मोडा जाना. हालांकि, शोधकर्ताओं का मानना है कि कई मामलों में कम प्रवाह वैश्विक जलवायु परिवर्तन की वजह से हो रहा है, जिसके कारण वाष्पीकरण की दर में वृद्धि हो रही है.

यह अध्ययन पारिस्थितिक और जलवायु से संबंधित कई व्यापक चिंताओं को जन्म देती है. विश्व के महान नदियों का जल पोषक तत्वों और खनिजों के निक्षेपों समेत महासागर में विलीन होता है. इस मीठे पानी का प्रवाह वैश्विक महासागर संचलन पैटर्न, को प्रभावित करता है जो लवणता और तापमान में परिवर्तन से संचालित होते हैं और दुनिया की जलवायु को विनियमित करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. दाई कहते हैं, हालांकि ताजे पानी के प्रवाह में हाल के परिवर्तनों के प्रभाव अपेक्षाकृत न्यून हैं और विश्व की प्रमुख नदियों के मुंहाने पर ही असर डालते हैं, मगर वैश्विक महासागर में ताजा पानी के संतुलन की दीर्घकालिक निगरानी की आवश्यकता है.

दुनिया की प्रमुख नदियों पर ग्लोबल वार्मिंग के प्रभावों के बारे में वैज्ञानिकों का रुख अस्पष्ट है. कंप्यूटर मॉडल के साथ किए गए शोध के अनुसार आर्कटिक के बाहर नदियों के प्रवाह में कमी की वजह मध्य और निम्न अक्षांशों का असर और उच्च तापमान के कारण में वाष्पीकरण का होना है. इससे पहले, प्रमुख नदियों के कम व्यापक विश्लेषण से संकेत मिले थे कि वैश्विक धारा प्रवाह में वृद्धि हो रही है. दाई और उनके सह लेखकों ने दुनिया की 925 बड़ी नदियों के प्रवाह का विश्लेषण किया है, इस दौरान उन्होंने कंप्यूटर के साथ-साथ धारा प्रवाह की वास्तविक माप का भी सहारा लिया है.

कुल मिलाकर, इस अध्ययन यह नतीजा निकला है कि 1948 से 2004 के बीच प्रशांत महासागर में गिरने वाले नदियों के जल की वार्षिक मात्रा में 6 प्रतिशत गिरावट दर्ज की गई है, यानी 526 क्यूबिक किलोमीटर जो मिसिसिपी नदी हर साल मिलने वाले पानी की मात्रा के बराबर है. हिंद महासागर के वार्षिक निक्षेप में 3 प्रतिशत या 140 क्यूबिक किलोमीटर की गिरावट है. इसके विपरीत आर्कटिक महासागर के वार्षिक निक्षेप में 10 प्रतिशत या 460 क्यूबिक किलोमीटर की बढोत्तरी दर्ज की गई है. संयुक्त राज्य अमेरिका की कोलंबिया नदी के प्रवाह में 1948-2004 के अध्ययन अवधि के दौरान 14 प्रतिशत की गिरावट आई, ऐसा मुख्यतः पानी के अत्यधिक उपयोग की वजह से हुआ.

दक्षिण एशिया में ब्रह्मपुत्र और चीन में यांग्त्ज़ी जैसी कुछ नदियों के प्रवाह में या तो स्थिरता या वृद्धि दर्ज की गई है. लेकिन हिमालय के ग्लेशियरों के क्रमिक रूप से गायब होने के कारण भविष्य के दशक में इनके प्रवाह में तेजी से गिरावट आ सकती है.