भूजल में घुलता जहर

देश के पचास फीसद से अधिक जिलों का भूजलस्तर तेजी से गिर रहा है। कई महानगरों समेत देश के सैकड़ों स्थानों पर भूजल खतरनाक ढंग से जहरीला हो चुका है। जनजीवन पर इसका विपरीत असर पड़ रहा है। जल्द ही इस समस्या से न निपटा गया तो स्थिति भयावह हो सकती है। इसके संकटों का जायजा ले रहे हैं पंकज चतुर्वेदी।

दिल्ली सहित कुछ राज्यों में भूजल के अंधाधुंध इस्तेमाल को रोकने के लिए कानून बन गए हैं, लेकिन भूजल को दूषित करने वालों पर अंकुश महज कानून की किताबों तक महदूद हैं। यह आशंका जताई जा रही है कि आने वाले दशकों में पानी को लेकर सरकार और समाज को बेहद मशक्कत करनी होगी। ऐसे में प्रकृतिजन्य भूजल का जहर होना मानव जाति के अस्तित्व पर प्रश्नचिह्न लगा सकता है।

पिछले दिनों अग्निकांड के कारण चर्चा में आए हरियाणा के मंडीडबवाली कस्बे के करीबी गांव जज्जल के लोग पीने का पानी लेने सात किलोमीटर दूर गांव जाते हैं। कारण जज्जल और उससे सटे तीन गाँवों में पिछले कुछ सालों से सैकड़ों लोग कैंसर से मारे गए हैं। कपास उत्पादन करने वाले इस इलाके में यह बात घर-घर फैल गई है कि उनके गांव के नलकूप और हैंडपंप पानी नहीं, जहर उगलते हैं। यह बात सरकार भी स्वीकार कर रही है कि अंधाधुंध कीटनाशकों के इस्तेमाल ने यहां के भूजल को ‘विशेष’ बना दिया है।

‘ग्राउंडवाटर इन अर्बन इनवायरमेंट ऑफ इंडिया प्रकाशन (केंद्रीय भूजल बोर्ड) पुस्तक में उल्लेख है कि देश की राजधानी दिल्ली में आईआईटी, एनसीईआरटी परिसर, नारायणा और शहादरा के कुछ इलाकों के भूजल में नाइट्रेट की मात्रा 12.5 मिलीग्राम प्रति लीटर तक है, जबकि इसकी निर्धारित सीमा 1.5 मिलीग्राम से अधिक नहीं होना चाहिए।

सीपीआर इनवायरमेंटल एजुकेशन सेंटर दिल्ली द्वारा आयोजित एक अध्ययन में पाया गया कि चेन्नई के भूजल में क्लोराइड और टीडीएस (घुलनशील पदार्थ की मात्रा) की मात्रा पूरे शहर में निर्धारित सीमा से दोगुना है। बिहार के नवादा जिले का कच्चारीडीह गांव, बांस के सहारे चलने वाले गांव के नाम से कुख्यात है। यहां के तीन सौ लोग जिनमें 50 बच्चे भी हैं, बगैर सहारे के चलने में लाचार हैं। सरकारी जांच से पता चला कि गांव के लोग ऐसा पानी पीने को मजबूर हैं, जिसमें फ्लोराइड की मात्रा आठ फीसद तक है, जो निर्धारित सीमा के पांच गुना के बराबर है।

गैरसरकारी संस्था ‘पर्यावरण सुरक्षा समिति’ की सर्वेक्षण रिपोर्ट बताती है कि गुजरात राज्य के कुल 184 तालुका में से 74 गंभीर भूजल प्रदूषण के शिकार हैं। अंकलेश्वर, अमदाबाद वगैरह में तो कैडमियम, तांबा और सीसे की अधिकता है।

धरती के नीचे पानी का अकूत भंडार है। यह पानी का सर्वसुलभ और स्वच्छ जरिया है, लेकिन अगर एक बार दूषित हो जाए तो इसका परिष्करण लगभग असंभव होता है। भारत में जनसंख्या बढ़ने के साथ घरेलू इस्तेमाल, खेती और औद्योगिक उपयोग के लिए भूजल पर निर्भरता साल-दर-साल बढ़ती जा रही है। धरती के भीतर से पानी निचोड़ने की प्रक्रिया में सामाजिक और सरकारी लापरवाही की वजह से भूजल खतरनाक स्तर तक जहरीला होता जा रहा है।

भारत में दुनिया की सर्वाधिक खेती होती है। यहां 500 लाख हेक्टेयर से अधिक जमीन पर खेती है, जिस पर 460 अरब घनमीटर पानी खर्च होता है। खेतों की जरूरत का 41 फीसद पानी सतही स्रोतों से और 51 फीसद भूगर्भ से मिलता है। पिछले पचास साल के दौरान भूजल के इस्तेमाल में 115 गुना इज़ाफा हुआ है। भूजल के बेतहाशा इस्तेमाल से एक तो जल स्तर बेहद नीचे पहुंच गया है और कुदरत की यह अनूठी सौगात तेजी से जहरीली हो रही है।

देश के कुल 672 जिले में से 360 जिलों को भूजल स्तर में गिरावट के लिए खतरनाक स्तर पर चिह्नित किया गया है। भूजल पुनर्संचयन के लिए तो कई प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन खेती, औद्योगिकीकरण और शहरीकरण के कारण जहर होते भूजल को लेकर लगभग निष्क्रियता का माहौल है। बारिश, झील और तालाब, नदियों और भूजल के बीच एक अंतर्संबंध है। जंगल और पेड़ पुनर्संचयन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसी प्रक्रिया में कई जहरीले रसायन जमीन के भीतर रिस जाते हैं। ऐसा ही दूषित पानी पीने के कारण देश के कई इलाकों में अपंगता, बहरापन, दांतों का खराब होना, त्वचा के रोग, पेट की खराबी जैसी बीमारियाँ पनप चुकी हैं। ऐसे अधिकांश इलाके आदिवासी बहुत हैं और वहां पीने के पानी के लिए भूजल के अलावा कोई विकल्प उपलब्ध नहीं है।

दुनिया में चमड़े के काम का 13 फीसद भारत में और भारत के कुल चमड़ा उद्योग का 60 फीसद तमिलनाडु में है। चेन्नई के आसपास फ्लार और कुंडावनुर नदियों के किनारे चमड़े के परिष्करण की अनगिनत इकाइयां हैं। चमड़े की टैनिंग की प्रक्रिया से निकले रसायनों के कारण राज्य के आठ जिलों के भूजल में नाइट्रेट की मात्रा बढ़ गई है। दांतों और हड्डियों का दुश्मन फ्लोराइड सात जिलों में निर्धारित सीमा से कहीं अधिक है। दो जिलों में आर्सेनिक भूजल में काफी मात्रा में पाई गई है।

संसद के दोनों सदनों में दी गई जानकारी के मुताबिक आंध्र प्रदेश के दस जिलों के भूजल में नाइट्रेट की मात्रा 45 मिलीग्राम से भी अधिक है। जबकि फ्लोराइड की मात्रा 1.5 मिलीग्राम के खतरनाक स्तर से अधिक का मात्रा वाला भूजल ग्यारह जिलों में पाया गया है। भारी धातुओं और आर्सेनिक की प्रचुरता वाले आठ जिले हैं। राज्य के प्रकाशम, अनंतपुर, नालगोंडा जिलों में गर्भ जल के पानी का प्रदूषण स्तर इस सीमा तक है कि वहां का पानी मवेशियों के लिए भी अनुपयोगी करार दिया गया है। दक्षिण भारत के कर्नाटक की राजधानी बंग्लुरु, झीलों की नगरी कहलाने वाले धारवाड़ सहित बारह जिलों के भूजल में नाइट्रेट का स्तर 45 मिलीग्राम से अधिक है। फ्लोराइड की अधिकता वाले तीन जिले और भारी धातुओं के प्रभाव वाला एक जिला भद्रावती है। सर्वाधिक साक्षर और जागरूक कहलाने वाले केरल का भूजल भी जहर होने से बच नहीं पाया है। यहां के पालघाट, मल्लापुरम, कोट्टायम सहित पांच जिले नाइट्रेट की अधिक मात्रा के शिकार हैं। पालाघाट और अल्लेजी जिलों के भूजल में फ्लोराइड की अधिकता होना सरकार ने माना है।

पश्चिम बंगाल में पाताल का पानी बेहद खतरनाक स्तर तक जहरीला हो चुका है। यहां के नौ जिलों में नाइट्रेट और तीन जिलों में फ्लोराइड की अधिकता है। वर्धमान, चौबीस परगना, हावड़ा, हुगली सहित आठ जिलों में जहरीला आर्सेनिक पानी में बुरी तरह घुल चुका है। राज्य के दस जिलों का भूजल भारी धातुओं के कारण बदरंग, बेस्वाद हो चुका है। ओड़िशा के चौदह जिलों में नाइट्रेट की अधिकता के कारण पेट के रोगियों की संख्या लाखों में पहुंच चुकी है, जबकि बोलांगिर, खुर्दा और कालाहांडी जिले फ्लोराइड की प्रचुरता के कारण गांव-गांव में पैर टेढ़े होने का रोग फैल चुका है।

अहमनगर से वर्धा तक लगभग आधे महाराष्ट्र के तेईस जिलों के जमीन के भीतर के पानी में नाइट्रेट की मात्रा 45 मिलीग्राम के स्तर से कहीं आगे जा चुकी है। इनमें मराठवाड़ा क्षेत्र के लगभग सभी तालुके शामिल हैं। भंडारा, चंद्रपुर, औरंगाबाद और नांदेड़ जिले के गांव में हैंडपंप का पानी पीने वालों में दांत के रोगी बढ़ रहे हैं, क्योंकि इस पानी में फ्लोराइड की अकूत मात्रा है। तेजी से हुए औद्योगिकीकरण और शहरीकरण का खामियाजा गुजरात के भूजल को चुकाना पड़ रहा है। यहां के आठ जिलों में नाइट्रेट और फ्लोराइड का स्तर जल को जहर बना रहा है।

मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के बड़े हिस्से के भूजल में यूनियन कार्बाइड कारखाने के जहरीले रसायन घुल जाने का मुद्दा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चित रहा है। इसके बावजूद लोग हैंडपंपों का पानी पी रहे हैं और बीमार हो रहे हैं। राज्य के ग्वालियर सहित तेरह जिलों के भूजल में नाइट्रेट का असर निर्धारित मात्रा से कई गुणा अधिक पाया गया है। फ्लोराइड की अधिकता की मार झेल रहे जिलों की संख्या हर साल बढ़ रही है। इस समय ऐसे जिलों की संख्या नौ दर्ज है। नागदा, रतलाम, रायसेन, शहडोल वगैरह जिलों में विभिन्न कारख़ानों से निकले अपशिष्ट के रसायन जमीन में कई-कई किलोमीटर गहराई तक घर कर चुके हैं और इससे पानी भी अछूता नहीं है। उत्तर प्रदेश में भूजल का स्तर डरावना बन गया है। लखनऊ, इलाहाबाद, बनारस सहित तेरह जिलों में फ्लोराइड की अधिकता पाई गई है, जबकि बलिया का पानी आर्सेनिक की अधिकता से जहर हो चुका है। गाजियाबाद, कानपुर जैसे औद्योगिक जिलों में नाइट्रेट और भारी धातुओं की मात्रा निर्धारित मापदंड से कहीं अधिक है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भूजल में जहर का कहर बेहद डरावना है। यहां 120 से 150 फुट तक का पानी भी सुरक्षित नहीं है। यहां का पानी अगर मीठा लग रहा है तो यह ज्यादा खतरनाक है- क्योंकि उसमें आर्सेनिक की मात्रा अधिक होती है।

बस्तर के जंगलों में हर साल सैकड़ों आदिवासी जहरीले पानी के कारण मरते हैं। यह बात सामने आ रही है कि नदी के किनारे बसे गाँवों में उल्टी-दस्त का ज्यादा प्रकोप होता है। असल में यहां धान के खेतों में अंधाधुंध रसायन का प्रचलन बढ़ने के बाद यहां की सभी प्राकृतिक जल-धाराएं जहरीली हो गई हैं। इलाके भर के हैंडपंपों पर फ्लोराइड या आयरन की अधिकता के बोर्ड लगे हैं, लेकिन वे आदिवासी तो पढ़ना ही नहीं जानते हैं और जो पानी मिलता है पी लेते हैं। माढ़ के आदिवासी शौच के बाद भी जल का इस्तेमाल नहीं करते हैं। ऐसे में उनके शरीर पर बाहरी रसायन तत्काल तेजी से असर करते हैं।

देश की राजधानी दिल्ली, उससे सटे हरियाणा और पंजाब की जल कुंडली में जहरीले ग्रहों का बोलबाला है। यहां का भूजल खेतों में अंधाधुंध रासायनिक खादों के इस्तेमाल और कारखानों के गंदी निकासी के जमीन में रिसने से दूषित हुआ है। दिल्ली में नजफगढ़ के आसपास के इलाके के भूजल को तो इंसानों के इस्तेमाल के लायक नहीं करार दिया गया है। खेती में रासायनिक खादों और दवाइयों के बढ़ते प्रचलने ने जमीन की नैसर्गिक क्षमता और उसके पर्तों के नीचे मौजूद पानी को अपूर्णीय क्षति पहुंचाई है। उर्वरकों में मौजूद नाइट्रोजन, मिट्टी के अवयवों में मिलकर नाइट्रेट के रूप में परिवर्तित होकर भूजल में घुल जाते हैं।

राजस्थान के कोई हजार गांव में जल की आपूर्ति का एक मात्र जरिया भूजल ही है और इसमें नाइट्रेट और फ्लोराइड की मात्रा खतरनाक स्तर पर पाई गई है। एक तरफ प्यास है तो दूसरी ओर जहरीला पानी। लोग ट्यूबवेल का पानी पी रहे हैं और बीमार हो रहे हैं। ‘चमकते गुजरात’ के तो छब्बीस में से इक्कीस जिले खारेपन की चपेट में है और अट्ठारह फ्लोराइड की मार से त्रस्त हैं। कुल मिलाकर पूरे देश में भूजल का पानी तेजी से जहरीला हो रहा है, अगर जल्द ही इस पर ठोस नीति तैयार करके उस पर अमल नहीं किया गया तो इस बात की आशंका बढ़ती जा रही है कि कहीं देर न हो जाए।