स्वच्छ पीने योग्य पानी का जीवन में अत्यधिक महत्व है। लेकिन आज औद्योगिकरण के कारण भूजल का अनाप शनाप दोहन हो रहा है। और साथ ही औद्योगिक इकाई से निकला हुआ गंदा पानी बिना किसी ट्रीटमेंट के जमीन में रिसाव करने के कारण भू-गर्भ के जल को भी प्रदूषित कर रहा है। इस लापारवाही के कारण आज जगह जगह अनेक जानलेवा बीमारियां फैल रहीं है।
हाल के दिनों में ग्रेटर नोएडा/नोएडा में कैंसर जैसी भंयकर बिमारी का प्रकोप फैल रहा है। अगर हम इसके प्रति सजग नहीं हुए तो यह विकराल रुप ले लेगा। जलाधिकार संस्था जो जल के विषय में आसपास के क्षेत्र में पिछले कई वर्षो से कार्य कर रही है इस विषय को पूरी गंभीरता से उठाएगी और सरकार पर दबाव डालेगी की इस संबन्ध में त्वरित कार्यवाही करें।
यूपी के ग्रेटर नोएडा में छपरौला इंडस्ट्रियल पार्क के पास कम से कम पांच गांव कैंसर की चपेट में है। राजधानी दिल्ली से इस इंडस्ट्रियल पार्क की दूरी महज घंटे भर की है। लेकिन औद्योगिक विकास का खामियाजा यहां के लोगों को कैंसर के रुप में चुकाना पड़ रहा है। इन गांवों में सादोपुर, अछेजा, सादुल्लापुर, बिशनुली और खेड़ा धरमपुर है। पिछले पांच सालों में इन गांवों में असामान्य रुप से कैंसर के मरीजों की संख्या में भारी इजाफा देखा गया है।
इन गांवो के ज्यादातर मरीज गैस्ट्रिक, लीवर और ब्लड कैंसर के शिकार है। इसके साथ हेपटाइटिस और स्किन की बीमारियों से पीड़ित लोगों की संख्या भी बड़ी तादाद में है। इन सारी बीमारियों का एक सिरा पेट के अंगों से जुड़े कैंसर के रुप में भी मिलता है, जो यहां के पानी में कैंसर को पैदा करने वाले तत्वों की मौजूदगी की ओर इंगित करता है।
दरअसल इसकी मुख्य वजह पर गौर किया जाय तो हम पाते है कि जिन गांवों, और बस्तियों में कैंसर का प्रकोप है इन्ही गांवो के पास औद्योगिकरण ने लगभग तीन सौ फैक्ट्रियों को खड़ा किया था। जिससे निकलने वाला कैमीकल और रासानिक तत्व पानी में आसानी से घुल जाता है और यहीं पानी भू-गर्भ में जमा होता है। जो भूजल पानी को जहरीला कर रहा है और वहीं दूसरी ओर इन गांवों में सरकार ने सप्लाई वाटर मुहइयां ही नहीं करवाया है। जिसकी वजह से गांव वाले पूरी तरह से भू-जल पर आश्रृत है। लोग हर काम के लिए हेंडपंप्प के द्वारा भू-जल को इस्तेमाल कर रहे है। अब वो खुद पीने के लिए हो, मवेशीयों को पीलाने के लिए या फिर खेती के लिए। खुद पीने से ये पानी सीधे लोगों के शरीर में जा रही है। मवेशीयों को पीलाने से उनके द्वारा प्राप्त दूध रासायनयुक्त निकल रहा है। और खेती में इस्तेमाल करने से फसले भी जहरीली हो रही है। यहीं वजह लगती है कि लोग इनके इस्तेमाल से कैंसर की चपेट में आ रहे है।
नोएडा प्रशासन ने ग्रेटर नोएडा के बिसरख ब्लॉक जिसके अंतर्गत कैंसर प्रभावित गांव आते हैं उसका सर्वे तैयार किया है। सर्वे के मुताबिक इलाके के 70 गांवों की 5 लाख आबादी में पिछले पांच साल में कैंसर की वजह से 209 मौतें हुई हैं। जबकि 199 कैंसर मरीजों का इलाज चल रहा है। हालांकि जिला प्रशासन के इन आंकड़ों पर यकीन करना मुश्किल है क्योंकि जब एक निजी मीडिया चेनल के संवाददाता ने डीएम चंद्रकांत से इस मुद्दे से जुड़े सवाल पुछे तो वो हर सवाल टालते रहे। क्योंकि उन्हें एक दिन पहले तक यही नहीं पता था कि उनके इलाके में लोग जहरीला पानी पीकर कैंसर से मर रहे हैं। इसी दौरान जब आईबीएन 7 के संवाददाता ब्रजेश का कैमरा जैसे ही सीएमओ के पास रखी फाइल की तरफ घूमा उन्होंने फाइल ही बंद कर ली। ऐसा लगा जैसे इसमें छिपे आंकड़े आने वाले दिनों में उनके लिए मुश्किल खड़ी कर सकते हैं। यही वजह है कि संबधित संस्थानों ने इस मामले में और शोध करने का फैसला किया है। गौरतलब है कि कैंसर के गांवों की खबर दिखाए जाने के बाद ही प्रशासन की नींद खुली है।
एक सामाजिक संगठन ने जिलाधिकारी को ज्ञापन सौंपकर दादरी क्षेत्र के बील अकबरपुर गांव के समीप स्थित केमिकल फैक्ट्री से होने वाले प्रदूषण की जांच की मांग की है। संगठन के संस्थापक सदस्य का कहना है कि फैक्ट्री से बड़ी मात्रा में केमिकल अवशिष्ट निकलता है। इसे जमीन में बोर के माध्यम से भूजल में मिला दिया जाता है। चिमनियों से निकलने वाले धुएं की वजह से वायु प्रदूषण हो रहा है। संगठन ने दावा किया है कि प्रदूषण की वजह से नई बस्ती, कैमराला, भोगपुर, दतावली, बोड़ाकी आदि गांवों में कई लोगों की मौत हो चुकी है। वर्तमान में भी कई लोग कैंसर से ग्रसित हैं। संगठन ने फैक्ट्री से निकलने वाले पानी, धुएं, मानकों की जांच कराने, गांव के हैंडपंप की जांच कराने, बीमारी से ग्रसित लोगों को उपचार व आर्थिक मदद दिलाने की मांग की है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि बीस साल पहले छपरौला इंडस्ट्रियलपार्क बनने से पहले यहां का पानी मीठा और बढ़िया होता था। हालांकि पार्क बनने के बाद यहां लगभग सौ फैक्ट्रियां लगी और उनके कचरे से यहां का पानी दूषित होने लगा। ये फैक्ट्रियां कॉस्मेटिक्स, पेस्टिसाइड्स, टीवी ट्यूब्स सहित कई अन्य वस्तुओं का उत्पादन करता है। जिससे यहां का पानी प्रदूषित होता गया। और आज यहीं प्रदूषण लोगों में कैंसर बन पनप रहा है।
यही वजह है कि लोगों के लगातार होती मोतों ने मुद्दे को सामने लाने पर मजबूर कर दिया। फिर मुद्दे पर दायर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए नेशनल ग्रिन ट्रिब्यूनल की चार सदस्यीय खंडपीठ ने इस मामले में उत्तर प्रदेश सरकार, उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड , केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और नोएडा प्रशासन को नोटिस जारी किया है। एनजिटी ने वहीं फैक्ट्रियों को भी नोटिस भेजा है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने भी यह दावा किया है कि फैक्ट्रियों से निकले कैमीकल से ही भूजल दूषित हो रहा है।
मेरठ के जय हिन्द एनजीओ ने भी नेशनल ग्रिन ट्रिब्यूनल में याचिका दायर की है जिसमें यह बात कही गई है कि फैक्ट्रियों के द्वारा बहुत ज्यादा मात्रा में रासायन प्रवाह किए जा रहे है। जिसकी वजह से काली, कृष्णा और हिन्डन नदियां दूषित हो रही है। साथ ही यमुना को भी जोड़ा गया है जिसकी दूषित होने की वजह पश्चिमी यूपी खासकर बागपत क्षेत्र में चीनी, पेपर और क़साईख़ाना को दोषि माना गया है। जो भारी मात्रा में जहरीले तत्व नदियों में घोल रहे है। एक सर्वे में तो यह भी सामने आया है कि रासायनिक तत्वो में मरकरी, लिड, ज़िंक, फॉस्फेट, सल्फाइड, आइअर्न, निकेल नदियों में घुले होने की पुष्टि हुइ है जो कि जलिय जीवन को नष्ट करती है।
इन्हें 12 दिसंबर तक ट्रिब्युनल को जवाब देने को कहा गया है। इलाके की फैक्ट्रियों से निकलने वाला पानी बेहद जहरीला है जो वहां के ग्राउंड वाटर में जहर घोल रहा है। इस वजह से वहां लोग कैंसर की चपेट में आ रहे हैं। साथ ही याचिका में ये भी कहा गया है कि नोएडा के गांवो में जिस तरह से फैक्ट्रियों का जहरीला पानी ग्राउंड वॉटर को खराब कर रहा है वो दरअसल वॉटर प्रिवेंशन एंड कंट्रोल ऑफ पॉल्युशन एक्ट का उल्लंघन है लिहाजा इसकी जांच के लिए एक निगरानी कमेटी बनाई जानी चाहिए। वहीं राष्ट्रीय कैंसर जागरुकता दिवस के दिन ग्रेटर नोएडा के आसपास के इलाके के लोगों की जांच के लिए अभियान चलाया गया।
कैंसर प्रभावित गांव के लोगों ने अच्छेजा गांव में अनिश्चतकालीन धरना शुरु कर दिया । ग्रामिणों ने मांग की है कि जल्द से जल्द कंपनियों से निकलने वाले दूषित पानी को रोका जाए, साथ ही कैंसर पीड़ित का प्रशासन की तरफ से फ्री में इलाज और स्वच्छ पेयजल की भी व्यवस्था कराई जाए। रामदल संगठन और गौ रक्षा हिंदू दल के सदस्यों व ग्रामिणों ने कैंसर प्रभावित गांवों में जागरुकता रैली भी निकाली। मुद्दे को जोर पकड़ता देख प्रशासन ने गांवों में पेयजल योजना लागू करने का प्लानिंग कर रही है। जहां सरकारी खर्चे पर पानी की टंकी लगाई जाएगी। लेकिन इसके मेंटेंनेंस खर्च गांव वालो देना होगा।